05. इसबगोल ( isabgol ) के अधिक उत्पादन देने के कारण

राजस्थान में इसबगोल ( isabgol ) की खेती –

औषधीय गुणों से भरपूर इसबगोल (isabgol ) के अधिक उत्पादन देने के कारण अब इसकी खेती पूरे उत्तर भारत में की जाती है इसबगोल एक महत्वपूर्ण नगदी फसलें राजस्थान में इसबगोल की खेती जालौर सिरोही जिले में प्रमुख रूप से की जाती है

खेत की तैयारी भूमि उपचार –

खरीफ फसल की कटाई के बाद भूमि की दो से तीन जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाएं दीमक एवं भूमिगत कीड़ों की रोकथाम हेतु अंतिम जुताई के समय कुणाल फोर्स 1 पॉइंट 5% 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में छिडकाव करें ताकि फसल में कीड़े ना लगे

खाद एवं उर्वरक –

गोबर की खाद उपलब्ध हो तो खेत में 15 से 20 गाड़ी गोबर की खाद मिला है इनको 30 किलो नाइट्रोजन और 25 किलो फास्फोरस की प्रति हेक्टर आवश्यकता होती है नाइट्रोजन की आधी है फास्फोरस की पूरी मात्रा बीज की बुवाई के समय 3 इंच 11 कर देवें तथा शेष आधी मात्रा हुआ है कि 30 दिन बाद सिंचाई के साथ देवें ताकि फसल की पैदावारी अच्छी हो सके

बीज उपचार है एवं बुवाई –

तुला सीता रोग के प्रकोप से फसल को बचाने हेतु एप्रोन 35 wh5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें के ही बीच कोबॉय अच्छी उपज के लिए इसबगोल की बुवाई नवंबर के प्रथम पखवाड़े में करना ठीक रहता है साधारण का गम है उसे 10 से 15 दिन पहले इसकी बुवाई कर देनी चाहिए इसका बीज बहुत छोटा होता है इसलिए इसे क्यारियों में शक्कर रेट चला देना चाहिए बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई कर दें !

इस प्रकार चेक करके बुवाई करने से 4 से 5 किलो प्रति हेक्टर बीज की आवश्यकता होती है इस गोल को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में बोने से निराई गुड़ाई में सुविधा होती है कटाई आसानी से कर सकते हैं ज्यादातर भारत के अंदर इसबगोल की खेती राजस्थान में होती है जो कि बीज बोया जाता है

सिंचाई –

इसबगोल (isabgol ) को बुवाई के समय उसके 8 दिन 35 दिन एवं 65 दिन बाद सिंचाई देने से अच्छी उपज या पैदावार होती है

निराई गुड़ाई –

पहली निराई गुड़ाई बुवाई के 20 दिन बाद एवं दूसरी 40 से 50 दिन बाद करें निराई के साथ-साथ गुड़ाई करना लाभदायक है खरपतवार नियंत्रण हेतु 600 ग्राम आइसोप्रोटरों सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर खड़ी फसल में करें खरपतवार नियंत्रण हेतु तुला सीता रोग कम हो जाता है

कीट एवं रोग की रोकथाम –

इसबगोल (isabgol ) में कीट और रोग का प्रकोप नहीं होता है यदि चूर्ण फगुन नामक रोग लग जाए तो 50% घुलनशील गंधक युक्त दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से गोलकर 15 दिन के अंदर में दो से तीन बार फसल पर छिड़काव करें मोयला कीट की रोकथाम हेतु फसलों में डॉन पिक्चर सीडब्ल्यूएससी ढाई सौ मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें फसल में 50 व्यवस्था पर तुला सीता रोग होने पर मैनकोज़ेब के 2% घोल का छिड़काव कर सकते हैं

कटाई मड़ाई –

इस भूगोल में 25125 तक कर के निकलते हैं पौधे में 60 दिन बाद बालिया निकलना शुरू होती है और करीब 115 से 130 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है फसल पकने का अनुमान पकी हुई बालियों को अंगुलियों के बीच में दबाकर किया जा सकता है पक्का हुआ दाना इस प्रकार दबाने से बाहर निकल आता है एवं फसल पूरी तरह से पकने के करीब एक-दो दिन पहले ही फसल की कटाई कर लेनी चाहिए कटाई सुबह के समय ही करें जिसे बीजों के बिगड़ने का डर नहीं रही है !

कटी हुई फसल को दो से तीन खलियान में सुखाकर इसबगोल (isabgol ) के झटका ले या बेलो द्वारा मडई कर निकालो असल में करीब आधा भारी होता है और आधा वजन हल्का होता है निकले हुए बीजों को सुखाकर बोरी में भर ले ताकि बेच सकते हैं नजदीकी मंडी के अंदर

इसबगोल (isabgol ) का उत्पादन है उपयोगी भाग –

ईसबगोल ( isabgol ) की भूसी जिसकी मात्रा बीज के बाहर में 30% होती है सबसे कीमती एवं उपयोगी भाग बाकी 70% से 65% गोली 3% खाली और 2% खाली होती है पूछी के अतिरिक्त तीनों भाग जानवरों को खिलाने के काम में आते हैं इसकी औसत उपज 9 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है और अच्छी खेत की देखरेख की जाए या समय -समय पर सिंचाई की जाए तो फसल की पैदावार और भी अच्छी हो सकती है

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इस भूगोल की अधिक उपज के लिए क्या करें या क्या करना चाहिए –

समय पर बुवाई करें बीज की गहराई 2 से 3 सेमी से ज्यादा नहीं रखें . बीज उपचार अवश्य करें उन्नत बीज का उपयोग करें पौधे की चढ़ाई 20 से 25 दिन बाद अवश्य करें क्रांतिक अवस्था भर दो सिंचाई से ज्यादा न करें रोग ग्रस्त पौधों को काटकर नष्ट कर देवें मोहल्ला का नियंत्रण समय पर अवश्य करें खरपतवार नियंत्रण समय पर करें कटाई उपयोग अवस्था में करें फसल की गहराई सुबह के समय खेत में ही करें !

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