3. ज्वार (Sorghum) की फसल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी !

ज्वार (Sorghum)-

दोस्तों आज हम आपको बताएंगे ज्वार (Sorghum) की फसल के बारे में कौन-कौन से इसकी किस्म आती है तो कब  कैसी जलवायु चाहिए और कितनी उपज प्राप्त होती है सब आज आपको बताएंगे
ज्वार एक प्रमुख खाद्यान्न है ज्वार को मोटा अनाज कहते हैं तथा ज्वार के दानों में बहुत तर्पण 6% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है ज्वार के पौधे की पत्तियां छोटी अवस्था में एक ग्रुप गोलू को साइड तुरीन पाया जाता है जिससे हाइड्रो रासायनिक अमल पैदा होता है इस अवस्था में चारा पशुओं को अधिक मात्रा में खिलाने पर पशुओं की मृत्यु हो सकती है

भारत के राजस्थान में ज्वार (Sorghum) की खेती टोंक, पाली, अजमेर, कोटा ,झालावाड़, जिले में उगाई जाती है

ज्वार (Sorghum) का वानस्पतिक नाम – सोरघम बाइकलर

ज्वार (Sorghum) का उत्पत्ति स्थान – अफ्रीका

ज्वार (Sorghum) के पौधे में गुणसूत्रों की संख्या – 20

ज्वार (Sorghum) के पौधे में प्रांगण की क्रिया – परप्रांगण

ज्वार के पौधे के अंदर जो पुष्प क्रम होता है पेनिकल कहा जाता है ज्वार के दाने को चरी ऑब्सेस कहते हैं

ज्वार की फसल को मोटे अनाजों का राजा कहते हैं ज्वार की फसल जो मर्दा से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण करती है ज्वार के पुष्प क्रम को पूरा खिलने में 10 दिन का समय लगता है ज्वार एक लघु दिवस पौधा है ज्वार को कैमल क्रॉप के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ज्वार अधिक तापमान और कम नमी से भी अच्छी पैदावारी होती है और ज्वार में जो पुष्प को पेनिकल कहते हैं जिसे सामान्य भाषा में हेड नाम से भी जाना जाता है

ज्वार में प्रोटीन की मात्रा 10 पॉइंट 4 प्रतिशत पाई जाती है तथा लाइव सीन की मात्रा 7 पॉइंट 4 से 17% पायी जाती है लाइसीम की कम मात्रा 1 पॉइंट 4 से 2% होने के कारण लगातार ज्वार मक्का खाने वाले को प्ले गिरा या गंजापन रोग होता है ज्वार का प्रशिक्षण * 25 से 30 ग्राम होता है ज्वार का सर्वप्रथम अनुसंधान कार्य 1977 में शुरू किया गया मिट्टी ज्वार में 17% शक्कर की मात्रा पाई जाती है

किस प्रकार की जलवायु में ज्वार (Sorghum) की पैदावार अच्छी हो सकती है –

ज्वार की फसल के लिए गर्म जलवायु की फसल है ज्वार 32 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में पौधे की वर्दी अच्छी होती है इसलिए खरीब और जायद की फसल के रूप में इसे उगाया जाता है + 38 से 75 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है

ज्वार (Sorghum) की फसल के लिए मर्दा –

किस प्रकार की मृदा होनी चाहिए तथा खेत की तैयारी किस प्रकार करें ताकि अच्छी पैदावार अच्छा बीज प्राप्त हो सके

ज्वार की फसल के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है उचित जल निकास वाली भारी मर्दा में भी उसकी बुवाई की जा सकती है भूमि का पीएच मान 6 पॉइंट 5 से 7 पॉइंट 5 तक उपयुक्त रहता है अंतिम जुताई के समय 25 किलो प्रति हेक्टर कुणाल 515 5% चूर्ण मिला दे बारी मिट्टी अधिक खरपतवार युक्त क्षेत्रों में गर्मी में एक गहरी जुताई करें ताकि वर्षा को जल अधिक मात्रा में शोका जा सके वर्षा के साथ ही दो-तीन जुताई विदेशी ओजरो से करें तथा पाटा लगाकर ही बुवाई करें

ज्वार की फसल के लिए उन्नत सील किस्म-

सी sh12 सीएसए 13351 bc9 आर एस एस वी 2425 4656 59c sh9 पूसा 36 राजश्री वन ज्वार 741 एसपी b1022 सीएस v15 इस प्रकार आधी किसमें है

ज्वार (Sorghum) की फसल की बीज दर एवं बुवाई का समय-

दाने के लिए ज्वार की 20910 केजी हेक्टर चारे के लिए 20035 से 40 केजी हेक्टर बुवाई की गहराई 4 से 5 सेमी बुवाई का समय खरीब के अंदर जून-जुलाई रबी की फसल में सितंबर अक्टूबर एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 * 12 पदों की संख्या डेढ़ लाख से 175000 प्रति हेक्टर

ज्वार की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक-

ज्वार की फसल के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 15 से 20 दिन पूर्व खेत में अच्छी तरह मिला दे वे इसके अतिरिक्त सिकरिया नाइट्रोजन तथा 40 किलो का फास्फोरस प्रति हेक्टर देनी चाहिए ताकि फसल की पैदावार अच्छी हो सके और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके

ज्वार की फसल में सिंचाई की विधियां-

ज्वार की फसल के लिए बाजरा की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है वर्षा ऋतु में बोई गई फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है परंतु लंबे समय तक वर्षा नहीं होने पर सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है खरीब कालीन फसल में 7 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए

अंतरा कृषि तथा निराई गुड़ाई-

ज्वार की बुवाई के 15 से 20 दिन बाद निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देना चाहिए बुराई करते समय ध्यान रहे कि पौधे की जड़ एने कटे जय ज्वार के सुत फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु आधा किलो ऐड्रेस इन बुवाई के तुरंत बाद 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए

ज्वार की फसल में लगने वाले मुख्य कीट-

तना छेदक फसल की छोटी अवस्था में नुकसान पहुंचाता है इसकी रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा या फॉरेड 3KG प्रति हेक्टर की दर से जमीन में बुवाई करें

ज्वार तना मक्खी प्रारंभिक अवस्था में नुकसान पहुंचाता है यह इसकी रोकथाम के लिए फॉर ग्रेड 3 केजी साड़ी 7 किलोग्राम प्रति हेक्टर उगेती बुवाई करनी चाहिए फसल की इसकी रोकथाम के लिए

यह सफेद लट रात को पौधे के ऊपर सक्रिय होती है इसमें बेसिलस तो पीली का उपयोग करें और फोरेट 10 केजी साडे 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में दें

ग्रास हॉपर यह एक सर्व बक्शी कीट है इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल पराठियों ऑन का उपयोग करें

ज्वार की फसल में लगने वाले रोग-

तुला सीता रोग यह रोग कवक जनित रोग है यह परणकी निचली सतह पर कवक का जमाव होने पर हो जाता है इसकी रोकथाम के लिए एप्प लोन का उपयोग करें

दाना खंडवा रोग यह कवक जनित रोग है इसकी रोकथाम के लिए भलाई टॉप्स का उपयोग करें और जवार का सूंगरी रोग

ज्वार की फसल की कटाई मड़ाई कैसे करें-

ज्वार की फसल की कटाई के लिए चारे के लिए ज्वार की बुवाई के 45 से 50 दिन बाद ही काटना चाहिए बहाई कटाई वाली किसम की पहली कटाई 50 से 55 दिन के बाद अगली कटाई 30 से 35 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए दाने की फसल के लिए दाने पकने पर सीटों के हरे दाने सफेद या पीले रंग में बदल जाते हैं दानो में जब नवमी घटकर 25% रह जाती है तब कटाई कर लेनी चाहिए पौधे के सिक्के बाली अलग करने के लिए बाद पौधों को सुखाकर सूखा चारा के रूप में रखा जाता है एवं लड़ाई बैलों या संचालित ट्रैक्टर थ्रेसर की सहायता से कर लेनी चाहिए

ज्वार की फसल की उपज-

ज्वार की उपज देसी किसमे से 10 से 15 क्विंटल से डेढ़ सौ क्विंटल और उन्नत एवं संकर किस्मों से 30 से 35 क्विंटल दाना तथा 80 से 100 क्विंटल चारा प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है हरे चारे की उपस्थिति में 400 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है

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